ऋणानुबंधन – भाग 2: प्रारब्ध की गहराई और विभाजित कुंडलियों की भूमिका

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आपने जो ऋणानुबंधन विषय पर पॉडकास्ट का दूसरा भाग साझा किया है, वो अत्यंत गहराई से पूर्व जन्म के कर्मबंधन और उनकी फलश्रुति को स्पष्ट करता है। आइए अब इसे एक विस्तारित ब्लॉग-पोस्ट या स्क्रिप्ट की तरह सुंदरता से क्रमबद्ध करते हैं, ताकि पाठक या श्रोता दोनों ही आसानी से समझ सकें।


ऋणानुबंधन – भाग 2: प्रारब्ध की गहराई और विभाजित कुंडलियों की भूमिका

1. प्रारब्ध और उसका स्वरूप - D30 (त्रिशांश कुंडली)

प्रश्न: हमारा प्रारब्ध दृढ़ है या परिवर्तनीय? ये कैसे जानें?

उत्तर: इसका जवाब हमें D30 चार्ट (त्रिशांश कुंडली) से मिलता है। विशेष रूप से अष्टम भाव को देखना होता है।

D30 के अष्टम भाव से प्रारब्ध का प्रकार कैसे जानें?

  • यदि अष्टम भाव में स्थिर राशि (Fixed sign: वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ) है और कोई ग्रह स्थित है —
    तो यह "दृढ़ प्रारब्ध" है। इसे बदला नहीं जा सकता।

    उदाहरण: यदि वृश्चिक राशि में शनि अष्टम भाव में है तो कर्मफल निश्चित है।

  • यदि चर राशि (Cardinal: मेष, कर्क, तुला, मकर) है —
    तो यह "अदृढ़ प्रारब्ध" है। बदलाव की संभावना रहती है।

  • यदि द्विस्वभाव राशि (Mutable: मिथुन, कन्या, धनु, मीन) है —
    तो यह "दृढ़-अदृढ़ प्रारब्ध" है। आंशिक रूप से बदला जा सकता है।


2. ऋणानुबंधन क्यों आता है?

पूर्व जन्म के अधूरे कर्म — जैसे धोखा, ज़मीन हथियाना, स्त्री को सताना, किसी की मृत्यु का कारण बनना — ये सब किसी गहरे ऋण का कारण बनते हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य:
सबसे गहन ऋण मां/स्त्री से होता है। यदि आपने पूर्व जन्म में किसी स्त्री को अत्यधिक कष्ट दिया है, तो इस जन्म में वह प्रेतशक्ति या प्रारब्ध के रूप में पुनः लौटती है। यह परिवार को लंबे समय तक प्रभावित करता है।


3. ऋणानुबंधन को कैसे पहचानें? — मूल जन्मकुंडली (D1) से

मुख्य सूचक ग्रह:

राहु, केतु, मंगल
इनका आपसी संबंध (युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन) ऋणानुबंधन दर्शाता है।

भाव के आधार पर ऋण का प्रकार:

ऋण शुभ है या अशुभ — कैसे जानें?

  • पंचमेश (5वें भाव का स्वामी) किसके साथ है और कौन देख रहा है?
    • केंद्र/त्रिकोण में हो तो शुभ ऋण
    • पाप ग्रहों से ग्रस्त हो तो अशुभ ऋण

4. विभाजित कुंडलियों से पुष्टि कैसे करें?

1. D7 (सप्तांश) — संतान से संबंध

  • D7 में यदि लग्न Odd Sign (मेष, मिथुन...) हो:

    • 1st child → 5th house
    • 2nd → 7th
    • 3rd → 9th
    • 4th → 11th
  • D7 लग्न Even Sign (वृषभ, कर्क...) हो:

    • 1st child → 9th
    • 2nd → 7th
    • 3rd → 5th
    • 4th → 3rd

    अब उस विशेष भाव के ग्रह, पाप/शुभ दृष्टि देखें — क्या संबंध है पंचमेश-सप्तमेश/षष्ठेश से?

2. D9 (नवांश) — जीवनसाथी से ऋण

  • D9 में सप्तमेश और राहु/केतु या मंगल की भूमिका देखें।

3. D3 (द्रेष्काण) — भाई-बहनों से ऋण

  • छोटे भाई-बहनों से संबंध देखने के लिए D3 का प्रयोग करें।

4. D30 (त्रिशांश) — प्रारब्ध की तीव्रता

  • जैसा ऊपर बताया, अष्टम भाव में ग्रह और राशि से समझें।

5. क्लासिकल प्रमाण: पद्म पुराण और श्री श्री रविशंकर जी के कथन

ऋणानुबंधन शब्द की उत्पत्ति पद्म पुराण से हुई है। श्री श्री रविशंकर जी भी कहते हैं —

"जब तक हमने इस बंधन को ज्योतिष से नहीं जोड़ा, हमें उत्तर नहीं मिला।"


6. निष्कर्ष:

  • ऋणानुबंधन जीवन की गूढ़ और सूक्ष्म कड़ी है, जो हमारे पूर्व जन्मों से जुड़ी होती है।
  • इसे D1, D7, D9, D30 से पहचाना जा सकता है।
  • यदि समझदारी से पहचान लिया जाए, तो कुछ अदृढ़ ऋण को उपायों, सेवा और तपस्या से बदलना संभव है।

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