अष्टम भाव में ग्रहों का प्रभाव – विस्तार से व्याख्या

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 अष्टम भाव में ग्रहों का प्रभाव – विस्तृत व्याख्या

अष्टम भाव कुंडली का सबसे रहस्यमय और गूढ़ भाव माना जाता है। यह मृत्यु, पुनर्जन्म, अचानक परिवर्तन, गुप्त धन, मानसिक और शारीरिक पीड़ा, शोध, तंत्र-मंत्र, और जीवन के गहरे रहस्यों से संबंधित होता है। जब इस भाव में राहु, केतु या शनि स्थित होते हैं, तो व्यक्ति के जीवन पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है।


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1. अष्टम भाव में राहु – छद्म शक्ति, भ्रम और रहस्य

प्रभाव:

राहु अष्टम भाव में व्यक्ति को छिपे हुए ज्ञान (तंत्र, ज्योतिष, गुप्त विद्या) की ओर आकर्षित करता है।

यह नकारात्मक ऊर्जा (नेगेटिविटी) को आकर्षित करता है, जिससे व्यक्ति को अचानक संकट या मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है।

व्यक्ति बहुत ही चालाक, तेज दिमाग वाला और विश्लेषणात्मक सोच वाला हो सकता है, लेकिन कभी-कभी भ्रमित करने वाली स्थिति में रहता है।

यह जीवन में अचानक उतार-चढ़ाव लाता है, जिससे व्यक्ति को कभी अप्रत्याशित लाभ और कभी हानि का सामना करना पड़ता है।

राहु इस भाव में जातक को विदेश यात्रा, रिसर्च, या साइबर फील्ड (हैकिंग, डिजिटल मार्केटिंग) में सफल बना सकता है।


स्वास्थ्य प्रभाव:

राहु पाचन तंत्र, लिवर और आंतों से जुड़ी समस्याएं दे सकता है, जैसे एसिडिटी, गैस, लिवर खराबी।

व्यक्ति को त्वचा संबंधी एलर्जी या विषाक्तता (टॉक्सिन प्रभाव) हो सकता है।

अधिक तनाव के कारण मानसिक अस्थिरता, डिप्रेशन, और अनिद्रा हो सकती है।


उपाय:

हनुमान जी की आराधना करें: प्रतिदिन हनुमान चालीसा और हनुमान सहस्त्रनाम का पाठ करें।

घर में शुद्धता बनाए रखें: गौमूत्र से पोछा लगाएं और नियमित रूप से हवन-पूजन करें।

चंद्रमा को मजबूत करें: चांदी के बर्तन में पानी पीना और सोमवार के दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाना लाभकारी होगा।

माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा करें: इससे राहु का दुष्प्रभाव कम होगा।



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2. अष्टम भाव में केतु – आध्यात्मिकता, गूढ़ विद्या और एकांतप्रियता

प्रभाव:

केतु अष्टम भाव में होने से व्यक्ति का झुकाव आध्यात्मिकता, साधना, और गूढ़ विद्याओं (तंत्र, ज्योतिष, न्यूरोलॉजी, पामिस्ट्री) की ओर होता है।

यह ग्रह अचानक धन लाभ या जीवन में अप्रत्याशित मोड़ लाने की क्षमता रखता है, लेकिन धन लंबे समय तक नहीं टिकता।

व्यक्ति अकेले रहना पसंद करता है, और सांसारिक मोह धीरे-धीरे कम हो जाता है।

अष्टम भाव में केतु जातक को कभी-कभी दान, परोपकार और समाजसेवा की ओर प्रेरित करता है।

व्यक्ति रहस्यपूर्ण व्यक्तित्व का होता है और उसे गुप्त ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।


स्वास्थ्य प्रभाव:

पेट से जुड़ी समस्याएं, विशेष रूप से गुप्त रोग (पाइल्स, फिशर) होने की संभावना रहती है।

शरीर में इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है, जिससे बार-बार संक्रमण (इनफेक्शन) होने का खतरा रहता है।

अधिक सोचने की प्रवृत्ति के कारण मानसिक बेचैनी और भ्रमित स्थिति हो सकती है।


उपाय:

गणपति उपासना करें: प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें।

कुत्तों को रोटी खिलाएं: केतु का दुष्प्रभाव कम करने के लिए यह उपाय अत्यंत प्रभावी है।

माता-पिता की सेवा करें: विशेष रूप से माता के सम्मान और देखभाल से केतु का दोष शांत होता है।

शनि और मंगल की शांति करें: केतु को नियंत्रित करने के लिए शनिवार को सरसों के तेल का दान करें और मंगलवार को लाल वस्त्र दान करें।



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3. अष्टम भाव में शनि – संघर्ष, अनुशासन और सफलता में देरी

प्रभाव:

शनि इस भाव में जीवन में संघर्ष और बाधाओं को बढ़ा सकता है, लेकिन धैर्य और मेहनत से सफलता भी दिला सकता है।

व्यक्ति जिम्मेदार, अनुशासित, और व्यवहारिक (प्रैक्टिकल) होता है, लेकिन प्रारंभिक जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

यह ग्रह प्रशासनिक सेवाओं (IAS, सरकारी अधिकारी), राजनीति, बिजनेस और लॉ (कानूनी मामलों) में सफलता दिला सकता है।

व्यक्ति सत्यनिष्ठ होता है और चापलूसी, झूठ और अनैतिक कार्यों से दूर रहता है।

धन संचय करने में कुशल होता है, लेकिन जीवन में चुनौतियां बनी रहती हैं।

शनि अष्टम भाव में होने से व्यक्ति दीर्घायु (लंबी उम्र) प्राप्त करता है, लेकिन संघर्षपूर्ण जीवन जीता है।


स्वास्थ्य प्रभाव:

हड्डियों, जोड़ों और नसों से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।

गठिया (अर्थराइटिस), कमर दर्द, और घुटनों में दर्द की संभावना रहती है।

लम्बे समय तक कोई पुरानी बीमारी व्यक्ति को परेशान कर सकती है।

मानसिक तनाव और डिप्रेशन की संभावना होती है, खासकर जब शनि की दशा या साढ़े साती चल रही हो।


उपाय:

हनुमान जी की उपासना करें: प्रतिदिन हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें।

शनिवार को दान करें: सरसों के तेल, काले तिल, लोहे की वस्तु और काले वस्त्र का दान करें।

गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करें: इससे शनि का दोष कम होता है और व्यक्ति को सफलता मिलने लगती है।

झूठ और अनैतिक कार्यों से बचें: सत्यनिष्ठ और ईमानदार रहें, इससे शनि का शुभ प्रभाव बढ़ता है।



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निष्कर्ष:

अष्टम भाव जीवन में छिपे हुए रहस्यों, संघर्षों और गूढ़ शक्तियों का कारक है। यहां राहु, केतु और शनि विशेष प्रभाव डालते हैं, जो व्यक्ति के जीवन को रहस्यमय, चुनौतियों से भरा, लेकिन ज्ञान और आध्यात्मिकता से युक्त बना सकते हैं। यदि व्यक्ति सही उपाय अपनाए और धैर्यपूर्वक कार्य करे, तो इन ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है और सफलता प्राप्त की जा सकती है।


अष्टम भाव में ग्रहों का प्रभाव – विस्तार से व्याख्या

अष्टम भाव कुंडली का सबसे रहस्यमय घर माना जाता है। यह मृत्यु, पुनर्जन्म, गूढ़ विद्या, अचानक परिवर्तन, गुप्त धन, मानसिक और शारीरिक पीड़ा, जीवन के रहस्यों को दर्शाता है। जब इस भाव में राहु, केतु या शनि होते हैं, तो इनका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर गहरा पड़ता है।


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1. अष्टम भाव में राहु – छद्म शक्ति और भ्रम

प्रभाव:

राहु जब अष्टम भाव में होता है, तो यह व्यक्ति को गूढ़ विद्याओं (जैसे तंत्र-मंत्र, ज्योतिष, मनोविज्ञान) में रुचि देता है।

यह ग्रह मानसिक भ्रम, अचानक परिवर्तन और अप्रत्याशित घटनाओं का कारण बन सकता है।

व्यक्ति के जीवन में अचानक धन लाभ या हानि की संभावना रहती है।

पारिवारिक जीवन में तनाव और गुप्त शत्रु (छुपे हुए विरोधी) उत्पन्न कर सकता है।

व्यक्ति कभी-कभी अनैतिक तरीकों से धन कमाने की ओर आकर्षित हो सकता है।


स्वास्थ्य प्रभाव:

पेट और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं, गैस्ट्रिक, लिवर की समस्या, विषाक्तता (टॉक्सिन इफेक्ट)।

एलर्जी, स्किन डिजीज, इन्फेक्शन होने की संभावना।

मानसिक चिंता और अत्यधिक सोचने की प्रवृत्ति जिससे तनाव बढ़ सकता है।


उपाय:

घर की नकारात्मकता दूर करने के लिए नियमित हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और हनुमान सहस्त्रनाम का पाठ करें।

घर में शुद्धता बनाए रखने के लिए गौमूत्र से पोछा लगाएं और हवन-पूजन करें।

चंद्रमा को मजबूत करने के लिए चांदी के बर्तन में पानी पीना लाभदायक होगा।

माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा करें, इससे राहु का दुष्प्रभाव कम होगा।



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2. अष्टम भाव में केतु – रहस्यमयी शक्तियां और आध्यात्मिकता

प्रभाव:

केतु इस भाव में व्यक्ति को अत्यधिक गूढ़ और आध्यात्मिक बना सकता है।

यह योगी, तांत्रिक, ज्योतिषी, शोधकर्ता और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए शुभ हो सकता है।

सांसारिक मोह से धीरे-धीरे दूरी बनने लगती है और व्यक्ति एकांतप्रिय हो सकता है।

यह ग्रह अचानक धन लाभ भी दे सकता है, लेकिन धन स्थायी नहीं रहता।

व्यक्ति को बचपन में माता-पिता से दूरी या मानसिक कष्ट हो सकता है।


स्वास्थ्य प्रभाव:

गुप्त रोग (पाइल्स, फिशर, हर्निया), किडनी स्टोन, इन्फेक्शन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

बार-बार पेट की समस्या, गैस, अपच की शिकायत बनी रह सकती है।

मानसिक रूप से व्यक्ति कभी-कभी भ्रमित हो सकता है या दिशाहीन महसूस कर सकता है।


उपाय:

गणपति उपासना और गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना लाभदायक रहेगा।

कुत्तों को रोटी खिलाने से केतु का दोष शांत होता है।

माता-पिता के चरण स्पर्श करें और उनका आशीर्वाद लें।

शनिवार और मंगलवार को लाल रंग के वस्त्र दान करें।



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3. अष्टम भाव में शनि – संघर्ष, स्थिरता और गहरी समझ

प्रभाव:

शनि इस भाव में सबसे अधिक प्रभावशाली ग्रह माना जाता है, यह व्यक्ति को गहराई से सोचने और धैर्य रखने की क्षमता देता है।

जीवन में कई कठिनाइयों और संघर्षों के बाद सफलता मिलती है, विशेष रूप से 42 वर्ष के बाद।

यह ग्रह सरकारी नौकरी, प्रशासनिक सेवाओं (IAS, IPS), राजनीति और बिजनेस में सफलता दिला सकता है।

व्यक्ति सत्यनिष्ठ, ईमानदार और दृढ़ संकल्पित होता है, लेकिन कई बार अकेलापन महसूस कर सकता है।

रिश्तों में देरी या परेशानियां आ सकती हैं, विशेषकर विवाह में विलंब।


स्वास्थ्य प्रभाव:

हड्डियों, जोड़ों और नसों से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।

गठिया (अर्थराइटिस), रीढ़ की हड्डी में दर्द और कमजोरी की संभावना।

लम्बे समय तक कोई पुरानी बीमारी रह सकती है।

डिप्रेशन और अधिक चिंता करने की आदत से मानसिक तनाव हो सकता है।


उपाय:

हनुमान जी की उपासना और शनि चालीसा का नियमित पाठ करें।

सरसों के तेल का दीपक जलाएं और गरीबों को दान करें।

काले कुत्ते को रोटी खिलाना शुभ रहेगा।

न्यायप्रिय और ईमानदार बने रहें, किसी के साथ धोखा न करें।



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निष्कर्ष:

अष्टम भाव में राहु, केतु और शनि का होना जीवन में संघर्ष, रहस्य, गूढ़ ज्ञान और अप्रत्याशित घटनाओं का संकेत देता है। ये ग्रह जीवन में बदलाव लाते हैं, लेकिन सही उपाय करने से इनके नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है। अगर व्यक्ति धैर्य, अनुशासन और आध्यात्मिकता को अपनाए, तो ये ग्रह सफलता और समृद्धि भी प्रदान कर सकते हैं।


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